सूर्यनमस्कार क्या है ? सूर्यनमस्कार की विधि, लाभ व सावधानियाँ / Surya Namaskar Kya Hai ? Surya Namaskar Steps, Benefits, Precautions In Hindi

 सूर्यनमस्कार क्या है ? सूर्यनमस्कार की विधि, लाभ व सावधानियाँ / Surya Namaskar Kya Hai ? Surya Namaskar Steps, Benefits, Precautions In Hindi

 सूर्यनमस्कार क्या है ? / Surya Namaskar Kya Hai ?

सूर्यनमस्कार भारतीय योग परम्परा का एक अभिन्न अंग है। जो विभिन्न आसन, मुद्रा और प्राणायाम से मिलकर बना है जिससे शरीर के सभी अंगो का व्यायाम होता है। वर्तमान समय में लोगों में अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आई है और अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए कई उपाय किये जा रहे है। इन सभी उपायों में सबसे प्रभावी उपाय योग है और उसमे सूर्यनमस्कार का विशेष स्थान है। सूर्यनमस्कार ऐसी गतिविधि है जो हमारे शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए बहुत जरुरी है।

सूर्यनमस्कार एक ऐसी सुर्योपासना है जो तन, मन और वाणी से की जाती है। इसे करने से सूर्य किरणों से मिलने वाले विटामिन डी की भी प्राप्ति होती है। सूर्यनमस्कार शरीर के सभी अंगो, जोड़ों और माँसपेशिओं को लचीला बनाने व आंतरिक अंगो की मालिश करने का एक सरल एवं प्रभावशाली तरीका है।

सूर्यनमस्कार की 12 स्थितियाँ होती है। एक चक्र को पूरा करने के लिए इन 12 स्थितियों को ही क्रम से दोहराया जाता है। सूर्यनमस्कार 7 आसनों का योग है।

1. प्रार्थना मुद्रा
2. हस्त उत्तानासन
3. पाद हस्तासन
4. अश्व संचालनासन
5. पर्वतासन
6. अष्टांग नमस्कार
7. भुजंगासन

सूर्यनमस्कार के नियमित अभ्यास से दीर्घ आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती है।

सूर्यनमस्कार की विधि / Surya Namaskar Steps In Hindi :

1. प्रार्थना मुद्रा

सूर्यनमस्कार क्या है ? सूर्यनमस्कार की विधि, लाभ व सावधानियाँ / Surya Namaskar Kya Hai ? Surya Namaskar Steps, Benefits, Precautions In Hindi

प्रार्थना मुद्रा की विधि –

प्रार्थना मुद्रा में पंजों को मिलाकर सीधे खड़े हो जाये और पूरे शरीर को शिथिल छोड़दे। सामान्य रूप से साँस लेते रहें। इस समय आपका ध्यान अनाहत चक्र पर होना चाहिये।

 
प्रार्थना मुद्रा के लाभ –

प्रार्थना मुद्रा से रक्त संचार सामान्य होता है और एकाग्रता आती है। जो व्यायाम की तैयारी के लिये जरुरी होता है।

 

2. हस्त उत्तानासन

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हस्त उत्तानासन की विधि  –

कंधों की चौड़ाई के बराबर दोनों भुजाओं को सर के ऊपर उठाइये। सिर और ऊपरी धड़ को यथाशक्ति पीछे झुकाने का प्रयास करे। भुजाओं को उठाते समय श्वास लीजिये। अपना ध्यान विशुद्धि चक्र पर रखें।

 
हस्त उत्तानासन के लाभ –

यह आसन पाचन शक्ति को सुधारता है, फेफड़ो को मजबूत बनाता है, इससे भुजाओं और कंधों की माँसपेशिओं का व्यायाम होता है। इसे करने से पेट की अतिरिक्त चर्बी घट जाती है।

 

3. पादहस्तासन

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पादहस्तासन की विधि –

इस आसन को करने के लिए सामने की ओर  झुकते जाइये जब तक आपके हाथ की उंगलियाँ और उसके बाद पंजे जमीन को पैरों के बगल में न स्पर्श करले। अपने मस्तक को घुटनों से स्पर्श कराये। ज्यादा जोर न लगाए। इस आसन को करते समय पैर सीधे रखें।

सामने की ओर झुकते समय श्वास छोड़ते जाये। अधिक से अधिक श्वास बाहर निकालने का प्रयास करे। इस आसन को करते समय ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केंद्रित होना चाहिये।

 
पादहस्तासन के लाभ –

यह आसन पेट व अमाशय के दोषों को नष्ट करता है। इसे करने से उदर की चर्बी कम होती है। यह आसन कब्ज को दूर करता है। इसे करने से रीढ़ की हड्ड़ी लचीली बनती है एवं रक्त-संचार में तेजी आती है।

4. अश्व संचालनासन

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अश्व संचालनासन की विधि –

बायें पैर को जितना हो सके पीछे ले जाये और घुटने को जमीन से टिकाये।

दायें पैर के घुटने को मोड़िये, दायी जंघा को पिंडलियों से सटाये लेकिन पंजा अपने स्थान पर ही रहना चाहिये।

भुजाएं अपने स्थान पर सीधी रखें।

हाथों के पंजे तथा दायें पैर का पंजा एक सीधी रेखा में होना चाहिये।

आपके शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर के पंजे, बायें घुटने व दायें पैर के ऊपर होना चाहिये।

अंतिम स्थिति में सिर को पीछे उठाइये, कमर को धनुष के आकार का बनाइये और आपकी दृष्टि ऊपर की तरफ होनी चाहिये।

बाये पैर को पीछे करते समय साँस लें।

आपका ध्यान आज्ञा चक्र पर होना चाहिये।

अश्व संचालनासन के लाभ –

यह आसन पेट के अंगो की मालिश कर उसकी कार्य प्रणाली को सुधारता है।

इससे पैरों की मांसपेशियां मजबूत बनती है।

 

5. पर्वतासन

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पर्वतासन की विधि –

शरीर का पूरा भार दोनों हाथों पर डालते हुए दाये पैर को सीधा करके पंजे को बाये पंजे के पास ले जाये।

नितम्बों को अधिकतम ऊपर उठाने का प्रयास करे और सिर को दोनों भुजाओं के बीच में ले जाये।

अंतिम स्थिति में पैर और भुजाओं को सीधा करने का प्रयास करे।

आपकी एड़िया जमीन पर स्थापित होनी चाहिये।

दायें पैर को सीधा करते एवं धड़ को उठाते समय श्वास छोड़िये।

आपका ध्यान विशुद्धि चक्र पर होना चाहिये।

पर्वतासन के लाभ –

यह आसन भुजाओं और पैरों के स्नायुओं एवं मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करता है।

यह आसन रीढ़ की हड्ड़ी को उल्टी दिशा में झुकाकर उसे लचीला बनाता है।

इस आसन को करने से रीढ़ के स्नायुओं का दवाब सामान्य होता है तथा उनमें शुद्ध रक्त का संचार होता है।

इस आसन को करने से मस्तिष्क की क्रिया शीलता बढ़ती है।

 

6. अष्टांग नमस्कार

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अष्टांग नमस्कार की विधि –

इस आसन को करने के लिये शरीर को जमीन पर इस तरह से झुकाइये कि अंतिम स्थिति में आपके दोनों पैरों की उंगलिया, दोनों घुटने, सीना, दोनों हाथ तथा ठुड्डी जमीन का स्पर्श करे। नितम्ब व उदर जमीन से थोड़े ऊपर उठे होना चाहिये।

इस आसन को करते समय श्वास को बाहर ही रोके रखें।

इसे करते समय आपका ध्यान मणिपूर चक्र पर होना चाहिये।

अष्टांग नमस्कार का लाभ –

यह आसान सीने का विकास करता है और पैरों तथा भुजाओं की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है।

 

7. भुजंगासन

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भुजंगासन की विधि –

इस आसन को करने के लिए हाथों को सीधा करते हुए शरीर को कमर तक ऊपर उठाये तथा सिर और गर्दन को पीछे की तरफ झुकाइये।

शरीर को कमर तक ऊपर उठाते समय सांस लें।

आपका ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर होना चाहिये।

भुजंगासन के लाभ –

इस आसन को करने से आमाशय पर दवाब पड़ता है जिससे आमाशय के अंगों में जमा हुआ रक्त हट जाता है और उसके स्थान पर शुद्ध रक्त का संचार होता है।

कब्ज़ व बदहजमी सहित यह आसन पेट के सभी रोगों में लाभदायक होता है।

रीढ़ को धनुषाकार बनाने से उसमें व उससे जुडी मांसपेशिओं में लचीलापन आता है एवं रीढ़ के स्नायुओं को नयी ऊर्जा मिलती है।

यह आसन दमा, ब्रोंकाइटिस और Cervical Spondylosis के मरीजों के लिए उपयोगी है।

 

8. पर्वतासन

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पर्वतासन की विधि –

शरीर को सामान्य करे व दोनों पैरों के पंजों को पलटाएं और उन्हें जमीन पर स्थापित करें।

शरीर को संतुलित कर अंतिम स्थिति में कमर तथा नितम्ब अधिक से अधिक ऊपर करें तथा एड़ियां जमीन पर होनी चाहिये और आपस में मिली हुई होनी चाहिये।

इस आसन को करते समय नाभि की तरफ देखना है।

जब धड़ ऊपर उठाया जायेगा उस समय श्वास छोड़ना है।

आपका ध्यान विशुद्धि चक्र पर होना चाहिये।

पर्वतासन के लाभ –

इस आसन को करने से भुजाओं एवं पैरों के स्नायुओं को मजबूती मिलती है।

यह आसन भुजंगासन के विपरीत आसन के रूप में रीढ़ को उल्टी दिशा में झुकाता है जिससे उसमे लचीलापन आता है।

यह आसन रीढ़ के स्नायुओं के दवाब को सामान्य करता है तथा उसमे शुद्ध रक्त का संचार करता है।

यह आसन मस्तिष्क की क्रियाशीलता को बढ़ाता है।


9. अश्व संचालनासन –

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अश्व संचालनासन की विधि –

इस आसन को करने के लिए बाये पैर को सामने की तरफ दोनों हथेलियों के बीच में रखें। अब पंजे को अपने स्थान पर ही रहने दे और बाये पैर को मोड़िये।

दायें पैर को जितना हो सके पीछे की तरफ ले जाये तथा तलवा आसमान की तरफ रहना चाहिये।

घुटने को जमीन पर टिकाये और भुजाये अपने स्थान पर सीधी रखे।

इसके बाद शरीर का भार दोनों हाथों, बायें पैर के पंजे, दायें घुटने व दायें पैर के पंजे पर रहेगा।

अंतिम स्थिति में अपने सिर को पीछे की तरफ उठाये, कमर को धनुषाकार बनाये और दृष्टि ऊपर की तरफ रखें।

बायें पैर को आगे करते समय श्वास लें।

इस आसन को करते समय ध्यान आज्ञा चक्र पर केंद्रित करें।

अश्व संचालनासन के लाभ –

इस आसन को करने से पेट के अंगो की मालिश होती है जिससे कार्य प्रणाली सुधरती है।

इस आसन को करने से पैरों की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है।

 

10. पाद हस्तासन

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पाद हस्तासन की विधि –

संतुलन बनाये रखते हुए दोनों हाथों पर शरीर का भार डालें व दाहिने पैर के पंजे को बायें पैर के पंजे के पास स्थापित करें।

पैरों को सीधा रखें तथा अपने माथे को घुटनों से स्पर्श करायें।

दोनों पैरों तथा हाथों के पंजों को एक सीध में रखे।

इस आसन को करते समय सामने की तरफ झुकते हुए श्वास को बाहर छोड़िये।

इस आसन को करते समय आपका ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर होना चाहिये।

पाद हस्तासन के लाभ –

इस आसन को करने से पेट व आमाशय के रोग मिटते है।

यह आसन पेट की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है।

इस आसन को करने से कब्ज की समस्या दूर होती है।

यह आसन रीढ़ को लचीला बनाता है एवं रक्त-संचार में तेजी लाता है।

 

11. हस्त उत्तनासन

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हस्त उत्तनासन की विधि –

अब दोनों भुजाओं को सिर के ऊपर उठाइये।

दोनों भुजाओं में कंधों के बराबर अंतर रखिये।

सिर तथा ऊपरी धड़ को पीछे करने का प्रयास करे।

जब भुजायें ऊपर उठाई जाएंगी तब साँस लीजिये।

इस आसन को करते समय आपका ध्यान विशुद्धि चक्र पर होना चाहिये।

हस्त उत्तनासन के लाभ –

यह आसन पेट की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है और पाचन को सुधारता है।

इसे करने से भुजाओं और कंधों की माँसपेशिओं का व्यायाम होता है तथा फेफड़े मजबूत बनते है।

 

12. प्रार्थना मुद्रा

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प्रार्थना मुद्रा की विधि –

इस मुद्रा में पंजों को मिलाकर सीधे खड़े हो जाये और पुरे शरीर को शिथिल कर ले।

सामान्य रूप से साँस लेते रहे।

इसे करते समय आपका ध्यान अनाहत चक्र पर होना चाहिए।

प्रार्थना मुद्रा के लाभ –

यह मुद्रा पुनः एकाग्र एवं शांत अवस्था में लाती है।

 

सूर्यनमस्कार के लाभ / Surya Namaskar Benefits In Hindi :

सूर्यनमस्कार को आसनों का राजा कहा जाता है। इसको करने से अनेकों लाभ प्राप्त होते है –

सूर्यनमस्कार करने से मन शांत होता है और एकाग्रता बढ़ती है।

यह रक्त संचार को सामान्य करता है।

इसे करने से पेट की अतिरिक्त चर्बी घटती है और पाचन शक्ति बढ़ती है।

यह भुजाओं और कंधों की मांसपेशिओं को मजबूत करता है और फेफड़ों को पुष्ट करता है।

यह पेट व आमाशय के दोषों को नष्ट करता है।

इसे करने से कब्ज़ समाप्त होता है।

इसे  करने से रीढ़ मजबूत व लचीली बनती है।

इसे करने से पैरों की मांसपेशियो को शक्ति मिलती है।

सूर्यनमस्कार करने से मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है।

सीने के विकास में भी यह सहायक है।

यह दमा के रोगियों के लिये उपयोगी है।

 

सूर्यनमस्कार की सावधानियाँ / Surya Namaskar Precautions In Hindi :

सूर्यनमस्कार अपनी क्षमता के अनुसार ही करना चाहिये किसी भी प्रकार की कोई जोर-जबरदस्ती नहीं करना चाहिये।

कोई भी योग अभ्यास खाली पेट ही करना चाहिये।

योग के आसनों को सही तरह से करना चाहिए। किसी भी आसन को जल्दबाजी में न करें।

यदि किसी प्रकार की कोई बीमारी हो तो किसी चिकित्सक की सलाह लेकर ही योग करना चाहिए।

बुखार आने या किसी बीमारी में भी सूर्यनमस्कार नहीं करना चाहिये।

गर्भावस्था और माहवारी में भी सूर्यनमस्कार नहीं करना चाहिये। 

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