योग का अर्थ / Yoga Ka Arth

योग का अर्थ / Yoga Ka Arth

योग का अर्थ / Yoga Ka Arth

ऐसा माना जाता है कि योग की उत्पत्ति पूर्व वैदिक काल में हुई, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता हैं। योग का वर्णन करने वाले ग्रंथों का काल स्पष्ट नहीं है लेकिन उपनिषदों में इसके बारे में काफी जानकारी मिलती हैं। योग शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रथाओं का समूह माना जाता है और इसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना हैं।

योग पूरी दुनिया में किया जाता है लेकिन पश्चिमी देशों में इसे तनाव मुक्त रहने, शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने का एक माध्यम माना जाता है। भारतीय परम्पराओं में इसे केवल शारीरिक व्यायाम नहीं माना जाता है इसके अपने आध्यात्मिक मूल्य भी है। भारत में योग का इतिहास बहुत पुराना है लेकिन पश्चिमी देशों में इसकी शुरुआत स्वामी विवेकानंद की सफलता के बाद हुई।

वर्तमान में योग पूरी दुनिया में किया जाता है और अब इसके आध्यात्मिक मूल्य का महत्त्व दुनिया के अन्य देशों के नागरिक भी समझ रहें हैं।

पतंजलि के योग सूत्र के दार्शनिक प्रणाली में योग का आध्यात्मिक अर्थ मिलता है जो है – मानव को एकजुट करना।

पाणिनि ने योग का जो अर्थ बताया है उसके दो मूल है पहला युजिर योग और दूसरा युज समाधौ। युजिर योग का अर्थ योग करना है और युज समाधौ का अर्थ ध्यान केंद्रित करना हैं। योग पर पहला भाष्य व्यास ने लिखा था जिसमें योग का अर्थ समाधि बताया गया है।

गीता में बताया गया है कि अपने कर्मों में निपुण होना ही योग है।

लिंग पुराण के अनुसार शिव की स्थिति प्राप्त करना ही योग है।